Sunday, January 26, 2014

खोजय पडत मातृत्व बालगीत

कैलास दास
पत्रकार, जनकपुर
हमरा अखनो स्मरण अछि बाल्यकालमे हमरा सभक खेलय वाला एकटा समूह छल । ओहिमे लडका–लडकी के अछि कोनो मतलव नहि । एकटा हाफ पैन्ट आ गँजी लगा कऽ कोनो आम गाछ होए वा घरक दलान चाहे कोनो सार्वजनिक स्थल किए नहि होएँ । झुण्ड बना कऽ कबड्डी, आम गाछी, गोटी गोटी सँगहि खपडाके फुटलहवा लऽकऽ जमिनमे चिर पारि ‘रेङ्ग, रेङ्ग ’खेलतहुँ त कखनो विद्यालय के घर या अपने दलाने मे जा कऽ पाच गोटे मिलकऽ ‘झिझिर कोनो झिझिर कोना कोन, कोन कोना जाउँ । साउस मारलक ठुमका पुतौहुँ कोना जाउँ’ स्मरण अबय त मनेमन अखनो मुस्की सेहो होबय लगय ।
ओहि समय केँ बहुत किछु याद त नहि अछि मुदा एकटा हाँस्य व्यँङ्ग हम सभ एहनो करैत छली ।
‘अण्टा रे भण्टा
हम दू भाई
पटना जाई
झुमका लाई
सासु के पहिनाई
तऽ पुतहुँ झुमकाई ।’
लेकिन आई हम सभ फेर सँ ओहि बाल अवस्था सभक बीच जाएबाक मौका मिलैत अछि तऽ आश्चर्य लगैत अछि । ओना तऽ पहिले जाका बच्चा सभक झुण्डो नहि अछि । आ एछियो तऽ ओकरा सभक बीचमे एहन गीत सुनवाक अवसर मिलैत अछि–
‘परदेशी, परदेशी, जाना नही
मुझे छोडके, मुझे छोड्के ।’
‘चलि आना तू...तू.. पान की दूकान पे
साढे तीन साढे तीन बजे ...।’
गाम ओहे छैक मुदा दलान नहि अछि  । बच्चा बुच्ची ओहने अछि मुदा वातारण नहि । गाछवृक्ष छैक लेकिन ओ समूह आब नहि ।  मातृत्व बाल गीत (फकरा) के स्थान मे हिन्दी, अँग्रेजी,भोजपुरी वातावरण सभ ठाममे छा गेल छैक ।  कखनो काल हमरा सभक बीच झगडो होइत छल मुदा मुडही, लाई, चाउरक रोटी, भूजा खाएक लेल मुदा अखन देखैत छी सिंगरेट, दारु, गुटका पान परागके लेल आई हमर भाज त काल्हि तू नहि खुवाएबे त देखैबो कहि क झगडा करैत अछि ।
वास्तव मे कखनो काल बडा आश्चर्य होइत अछि कि देखते–देखते ऐहन परिवर्तन कोना भऽ गेलय । एकटा हम सभ रही जे गुरु जी के देखते नुका जाई । मायबाबु आ अपना से बडका से हरदम डर लगाय । आई परिवर्तन सँगहि बच्चामे शिष्टाचार, आदर स्वभाव किछुओ नहि अछि । कोन बुढ, कोन जवान सभलगय एक समान ।
तखन एकर दोषी के त ? अवसय एहन वातावरण बनाबयमे हमरे सभक दोष अछि । जाधरि हम कमजोर नहि भेली त हिन्दी, अँग्रेजी आ भोजपुरी वातावरण हमरा उपर कोना चढि गेल । एकर खोजी करबाक अखनो आवश्यकता अछि । जाधरि मैथिली मातृत्व बाल साहित्य के अगाडि नहि लाएब तऽ दोसरक कला संस्कृति भेषभूष आ वातावरण एहने हमरा सभक उपर लदाइत रहत । ऐकर परिणाम भेटत भूखमरि, लुटपाट, धोखाधरी एतबे नहि अपन बालबच्चा अपने माय बाबु के भुला कऽ कखन की  करत नहि कहि सकैत छी । तँ एकरा सभक दूर करबाक लेल मैथिली मातृत्व बाल साहित्यके अगाडि बढाबही पडत । ओना तऽ गैर सरकारी संस्था आसमान नेपाल बालबालिकाक लिखल ‘बाल शक्ति पत्रिका’ तीन महिना पर प्रकाशित कय रहल अछि ।
एहि सँ ओकर समाधान नहि अछि । ओहि मे एकदूगो बाल कविता सँ मात्र मैथिली मातृत्व के नहि बचा सकैत छी । ऐकरा लेल एखनो बुढ पुरानक बात विचार आ ओहिक समय वातावरण के ब्यख्या करही टा पडत ।

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