Monday, February 10, 2014

‘विवाद में जनकपुर का विकास’

कैलास दास

एक तरफ जनकपुर धार्मिक स्थलो को लेकर प्रसिद्ध है तो दुसरी ओर यहाँ का सडके, नाला और जीर्ण मन्दिरों को लेकर बदनाम भी । जहाँ तक विकास की बात है तो नेपाल सरकार से ज्यादा दातृ राष्ट्र में उत्सुकता अधिक देखा गया है, चाहे  भारत सरकार, थाइल्याण्ड सरकार वा एशियाली विकास बैंक क्यो न हो । अगर इन सबो को सहयोग को मात्र सही सदुपयोग किया गया होता तो जनकपुर अभी नेपाल के प्रथम पर्यटकीय स्थल माना जाता । परन्तु स्थानीय कुछ विवादो के कारण जिस प्रकार से विकास होनी चाहिए वह नही हुआ है ।
जनकपुर विशुद्ध रुप से धार्मिक पर्यटकीय स्थल हो इसके लिए स्थानीय स्तर से जिस प्रकार के प्रयास होना चाहिए अभी तक किसी ने नही किया है । हा, एक बात तो आवश्य है कि इसके विकास के लिए जो भी बजट आता है उस पर नेताओं को गिद्ध दृष्टि जरुर लगी रहती है । यही कारण है कि जनकपुर के विकास से ज्यादा व्यक्ति को विकास देखा गया है । कुछ दिन पहले जिला विकास समिति के १८ कर्मचारीयों को निलम्बन किया गया है । उनके उपर भ्रष्टाचार के आरोप लगी है । जनकपुर नगरपालिका में भी वही हाल है । कहने का मतलव है जनकपुर धार्मिक स्थल को लेकर प्रसिद्ध होना चाहिए न की भ्रष्टाचार और गन्दगी के नाम से ।
भारत के हरियाणा, पञ्चाब, राजस्थान, दिल्ली, लखनाउ, झारखण्ड,मद्रास, कलकत्ता सहित दर्जनौं प्रान्त से जानकी दर्शन के लिए यात्रीगण जनकपुर आते है जिनमे अधिकांंश के पाँव में जुते वा चप्पल नही देखने को मिलेगा । सडको पर कंकड पत्थर के वाजुद भी नङ्गे पाँव चलते है । गन्दगी से भरी तलाव में स्नान कर माता जानकी के दर्शन करने जाते है । और जाते वक्त यहाँ के मिट्टी को अपने साथ ले जाते है । वही यहाँ के लोगों में उसके विपरित देखा गया है । यह बात सम्झना होगा कि हम जिस जगह रह रहे है उसका कितना महत्व है । इसी महत्व को समझकर जनकपुर के विकास के लिए थोड़ा प्रयास स्थानीय स्तर से और नेपाल सरकार की ओर हुआ होता तो जनकपुर आज विश्व सम्पदा सूची में होता । धार्मिक दृष्टि से यहाँ के विकास हो उसके लिए नेपाल सरकार से ज्यादा दातृ राष्ट्र सहयोग करने के लिए तत्पर है । परन्तु यहाँ के राजनीतिक उलझन के चलते कोई भी राष्ट्र आगे आने से कतराती है ।
वैसे कहा जाए तो पर्यटको को रोकने के लिए जनकपुर प्रत्येक दृष्टि से सम्पन्न है । कहते है बावन कुट्टी बहत्तर कुण्ड साधु चले झुण्ड ही झुण्ड । अर्थात यहाँ जितनी मठ मन्दिर है उतने ही यहाँ पर तलाव भी जिसका अपना महत्व है । उसे संरक्षण के लिए दातृ राष्ट्र प्रतिबद्ध है परन्तु करने वाले निकाय बहुत ही तुच्छ और भ्रष्ट विचार को देखा गया है ।
भारत सरकार ने यहाँ के सौन्दर्यीता को विकास में सबसे ज्यादा ध्यान दी है । कुछ दिन पहिले मठ मन्दिर, पोखरी एवं पर्यटकीय स्थल को विकास के लिए वृहत्तर जनकपुर क्षेत्र विकास परिषद् को तीन करोड रुपयाँ दिया था । उससे रंगभूमि मैदान (बाह्र विघा), गंगा सागर एवं धनुष सागर पोखरी के सौन्दर्यीकरण के साथ छोटे छोटे मठ मन्दिर में खर्च का विवरण वृहत्तर ने प्रस्तुत किया है । लेकिन एक भी काज पुरा नही हुआ है । जब वीगरञ्ज स्थित महावाणिज्यदूत का भारतीय कन्सिलर अञ्जु रञ्जन ने विकास को अवलोकन करने आया तो उसने सन्तुष्टि व्यक्त करते हुए कहा कि जनकपुर और अध्योया बीच बहुत ही गहरा सम्बन्ध है, इसलिए जनकपुर के विकास प्रति भारत प्रतिबद्ध है । किन्त् भारत सरकार ने जिस काम के लिए बजट दिया था वह काम सन्तुष्टि योग्य नही हुआ है । उन्होने यह भी कहा कि भारत अच्छे काम के लिए लगानी करना चाहता है जिससे दोनो मुल्क बीच ऐतिहासिक सम्बन्ध बना रहे । लेकिन काम मेंं इन्दारिता को कमी देखा गया, उन्होने स्पष्ट रुप से एक कार्यक्रम में बोली है । उनके मुख से निकला यह शब्द वास्तव में स्थानीयवासीयो के लिए लज्जास्पद है । नेपाल सरकार कभी जनकपुर के सौन्दर्यीता पर ध्यान तो दिया ही नही और पडोसी राष्ट्र के सहयोग राशी में भी भ्रष्टाचार आरोप कितनी बइज्जतीवाली बात है ।
उसी प्रकार नेपाल के सबसे बडी यतायात साधन के रुप में नेपाल रेल्वे है जो अभी घुटघुट कर चल रही है । उसे भी ब्रोडगेज करने के लिए भारत सरकार ने ८ अर्ब रुपया सहयोग करने का प्रतिबद्धता जनाया है । उसमे से एक अर्ब रुपैया दे भी चुका है । परन्तु जिस प्रकार से काम प्रारम्भ होनी चाहिए अभी तक नही हुआ है । जग्गा मुआब्जा, रेल्वे स्टेशन की जग्गा उपलब्ध में राजनीतिकरण सहित बहुत सारे ऐसा विवाद है जिसके कारण दो वर्ष मे तैयार होने वाला ब्रोडगेज रेल और कितना दिन लगेगा बताना मुश्किल है । मुझे खुशी है कि परोसी राष्ट्र इस स्थल को विकास देखना चाहता है परन्तु दुःख है कि यहाँ का सम्बन्धित निकाय उसे भी अपना घोटाला के रास्ते सम्झते है ।

जनकपुर विकास के लिए १ अर्ब ८२ करोड अनुदान
इस बार जनकपुर दुल्हिन की तरह सजेगी ऐसा चर्चा आम लोगों में व्याप्त है । एशियाली विकास बैंक नें जनकपुर विकास के लिए १ अर्ब ८२ करोड रुपैया दिया है । जिनमे सडके, नाला, पोखरी तथा ऐतिहासिक स्थलकों विकास किया जाऐगा ।

Saturday, February 8, 2014

उम्र घटाने—बढाने वाला कार्यालय

कैलास दास
जनकपुर । आप ज्यादा मोटे हो गए है तो मोटापा घटाने वाला दवा खाने से मोटापा कम किया जा सकता है । आपका स्वस्थ्य अच्छा नही है वा आप पतले है उसका भी दवा असानी से उपलब्ध है । परन्तु आपकी उम्र ज्यादा हो गया है तो कम कैसे करेगें । कम है तो कैसे बढाएगें । यह तो आश्चर्य की बात है ही । प्राकृतिक ने जो उम्र निश्चित किया है उसे कोई भी दवा वा व्यक्ति नीचे उपर नही कर सकता है ।
हा, नेपाल में ऐसा भी अड्डा देखा गया है जहाँ पर आपको काम निकालना है और काम के नियमानुसार उम्र कम है वा ज्यादा उसे भी बढाया—घटाया जा सकता है । वसरते उसके के लिए आपको ज्यादा रकम चुकाना पडेगा । आपके सामने एक बोर्ड लगी है जिसमे लिखा है घुस लेना—देना दोनो अपराध है । परन्तु वही पर एक वर्ष बढाना हो वा एक वर्ष कम करना हो तो उसके लिए आपको दो हजार रुपैया देना पडेगा ।

आपको यह पढने के बाद आश्चय लगा होगा, यह अड्डा कौन हो सकता है, चाहे आपने भी ऐसा गलती किये होगें तो स्वतः समझ गये होगें । वह अड्डा है जिल्ला प्रशासन कार्यालय । वैसे यह घटना धनुषा के है । परन्तु हमने महोत्तरी, सिरहा, सप्तरी, सिन्धुली के साथीयों से पुछने पर कहा यह कोई नई बात नही है, ऐसा चलता रहता है । जहाँ पर भ्रष्टाचारीयों को, दोषी को, असुरक्षित व्यक्ति को सुरक्षा की ग्यारेण्टी दिया जाता है वही पर ऐसा करतुत हो शर्मनाक बात है ।
राजेश मुखिया (नाम परिवर्तित नाम) ने हमें फोन किया । हम जिल्ला प्रशासन कार्यालय धनुषा में पासपोर्ट बनाने आए है, परन्तु पासपोर्ट के लिए हमसे ६ हजार रुपैया घुस माँग रहे है । उसका जन्म स्थल धनुषा के कर्माही है किन्तु वह अभी विराटनगर मे रह रहे है । जब हम वहाँ पर पहुँचे तो जिल्ला प्रशासन कार्यालय के कर्मचारी और मुखिया जी के साथ कुछ गोप्य बात हो रही थी । मैने पुछा —‘जी आप किस बात के लिए उससे ६ हजार रुपैया माँग रहे है ।’ उन्होने उत्तर दिया —‘मै क्यो किसी से पैसा माँगुगा, वह जो दे रहे उसे मै अपना दस्तुर के अनुसार बता रहा हू । उसका लडका का जन्म मिति २०५५ में हुआ है और उसने नागरिकता में अपने से २०५१ कर के पासपोर्ट बनान चाहते है । उसका दण्ड तो उसे तिरना ही होगा न । एक वर्ष ज्यादा वा कम करना है तो दो हजार रुपैया लगेगा । उसी प्रकार उन्हे तीन वर्ष होता है तो ६ हजार रुपैया हुआ । नही तो जिस दिन उसका उम्र होगा अपना पासपोर्ट बना लेगा । कर्मचारी के अनुसार वह विदेश जाने पर लाखौं रुपैया कमा सकता है तो मैने एक वर्ष कम वा ज्यादा करने को दो हजार रुपैया रखा हूँ तो कोई ज्यादा नही है ।
बडी असमंजस्ता की बात है । ऐसी घटना मे दोषी आप किसको बताऐगें, कर्मचारी वा मुखिया को । मना की मुखिया यहाँ पर रोजगारी नही मिलने पर अपने लडका को विदेश पठाना चाहता है तो कानून पालन करता भी पैसा के सामने अपना कर्तव्य भूल जाते है । यही कारण है कि भले ही आज देश भूमरी में फसता जा रहा हो परन्तु व्यक्ति को विकास नही रुका है । कानून के पाठ सिखानेवाले अड्डा ही ऐसी बात करे तो देश का भविष्य कितना पिच्छे चला जाऐगा वह सोचनेवाली बात है ।