Saturday, September 27, 2014

क्या आन्दोलन ही एक विकल्प

कैलास दास:संविधान निर्माण २०७१ माघ में होगा इसकी सुनिश्चितता तो नहीं है । लेकिन मधेशवादी दल आन्दोलन का उद्घोष कर चुके हैं । मधेशी जनअधिकार फोरम नेपाल के अध्यक्ष उपेन्द्र यादव, तर्राई मधेश लोकतान्त्रिक पार्टर्ीीे अध्यक्ष महन्थ ठाकुर, सद्भावना के अध्यक्ष राजेन्द्र महतो ने कहा- नए संविधान में सभी वर्ग समुदाय के अधिकार को कुण्ठित कर संविधान लाने की बात हो रही है जो कभी स्वीकार नहीं किया जाऐगा  और इसके लिए एक ही विकल्प है ‘व्रि्रोह’ । फिर से मधेश आन्दोलन ।
सवाल उठता है, संविधान मंे अधिकार सुनिश्चिता के लिए सडÞक आन्दोलन ही क्या एक विकल्प है – या संसद में नेताओं की आवाज भी बुलन्द होनी चाहिए । संसद में ताली बजाकर और मधेश में आन्दोलन का उद्घोष कर मधेशियों को अधिकार मिल जाएगा – नयाँ नेपाल की परिकल्पना सच होगी – गणतन्त्र की अनुभूति सभी नेपाली भाषा-भाषियों को चाहिए । जिसे जनता ने चुनकर संविधान निर्माण के लिए भेजा है वह पहले अधिकार की लडर्Þाई संसद में लडÞें । वहाँ से गूंजी आवाज देश के विभिन्न कोने तक पहुँचेगी । तब जनता के बीच आने की आवश्यकता नहीं होगी । जनता स्वयं अपने अधिकार के लिए सडÞक पर आ जाएगी ।
मधेश हित के लिए कुछ दिन पहले अच्छा संकेत मिला था, मधेशवादी दलों का एकीकरण हो रहा है । उसमें माओवादी भी शामिल है । यह मधेशवादी दलों के लिए शक्तिशाली होने का संकेत था । लेकिन पुराने रवैए की तरह इसमें भी सफलता नहीं मिली । भारत में अग्रेजों ने ‘फूट डालो और राज्य करो’ जैसी नीति मंे सफलता पाई थी । आज वही स्थिति मधेशवादी दलों के सामने हैं । जब तक स्वार्थ रहेगा, टूटफूट की राजनीति चलती रहेगी । जिससे मधेशवादी दल कमजोर ही रहेंगे ।
यह सभी को मालूम है कि यहाँ पर दो तरह की राजनीति होती है । पहला मधेश को लक्षित कर मधेशवादी दल और दूसरा नेपाली काँग्रेस, एमाले सहित का दल है । बहस इस बात से है कि मधेश का मुद्दा एक, भावना एक, राजनीतिक धु्रबीकरण एक है फिर अधिकार सुनिश्चितता के वास्ते एकीकरण में सुस्ती कैसी – संगठित न होने में कहीं न कहीं स्वार्थ, लोभ लालच है जिसे त्याग करना आवश्यक है । अगर संविधान निर्माण के समय में एकीकरण नहीं हो सका तो एक इतिहास कायम होगा, जिसमें लिखा जाऐगा ‘मधेशी दल टूटफूट और सत्ता लिप्सा के कारण अधिकार सुनिश्चित नहीं करा पाया ।’ इतना ही नहीं जिस आन्दोलन का उद्घोष हो रहा है, वह कभी भी सफल नहीं होगा । मधेशी जनता ६/७ वर्षकी गतिविधि से राजनीतिक दलोें को अच्छी तरह पहचान चुकी है । अब भाषण और रासन से नहीं विकास और अधिकार से किसी भी दल का मापन होगा ।
एक कार्यक्रम में तमलोपा अध्यक्ष महन्थ ठाकुर ने कडÞे शब्दो में कहा ‘राज्य भिडÞन्त के नाम पर मधेश के युवा शक्तिओं को इन्काउन्टर कर रहा है । प्रतिभाशाली व्यक्तिओं को विभिन्न नाम पर जेल में भेजा जा रहा है । मधेश प्रति राज्य अपना एक ही दायित्व समझता है ‘नागरिकता बनाना और विदेश भेजना’ । भिडÞन्त का मतलव होता है दो तरफा घायल, गोलीबारी होना । लेकिन एक भी सबूत नहीं है कि राज्य पक्ष का सेना, प्रहरी घायल हुआ हो ।’ ठाकुर जी के इन बातों पर तालियाँ तो अवश्य बजी । लेकिन शर्मनाक बात तो यह है कि सरकार में मधेशवादी दल भी हैं । मन्त्री, राज्यमन्त्री और राष्ट्रपति हुए हैं और वर्तमान मंे भी हैं । उसके वावजूद भी संसद से मन्त्रालय तक इस तरह की विभेदकारी नीति को क्यांे नहीं हटाया गया – मधेश में आकर अपनी आवाज को बुलन्द करनेवाले मधेशवादी दलों के लिए यह सबसे बडÞा प्रश्न है । जब तक सत्ता में रहें कही पर विभेद नहीं होने का महसूस हुआ और सत्ता से बाहर होते ही अपना दुःखडÞा मधेशी जनता के यहाँ पहुुँचाने लगते है ।
संविधान निर्माण से पहले आवश्यकता है- अपनी शक्ति दिखाने का । तभी नयाँ संविधान निर्माण में वर्चश्व बढेÞगा और अधिकार की सुनिश्चितता होगी । और संघीयता सहित का संविधान बनेगा । जितनी मेहनत मधेशवादी दल मधेश के जनता के समक्ष आने में कर रहे हैं, उससे ज्यादा आवश्यकता है एकीकरण करने की ।
जिस तरह से नेपाली काँग्रेेस, नेकपा एमाले और राप्रपा नेपाल की धारणा संविधान निर्माण के प्रति है, उसी तरह एमाओवादी, माओवादी, मधेशवादी दलों का विचार किया जाए तो माघ में संविधान आने की सम्भावना नहीं दिखती है । ऐसा अनुमान किया जाता है कि संविधान आने से पहले देश में फिर से उथल-पुथल होगा । कुछ दिन पहले एमाले के पर्ूव अध्यक्ष झलनाथ खनाल ने जो तर्क दिया है- मधेशवादी दलों को विचार करनेवाली बात है । उन्होने कहा ‘मधेशवादी दल संविधान नहीं चाहते हैं । और मधेशवादी के साथ माओवादी भी जिस राह चल रहे हैं वह कभी साकार नहीं होगा । माओवादी अगर मधेशवादी दलों को छोडÞकर आए तो उसी में उनका हित है ।’
वैसे एमाले अध्यक्ष झलनाथ खनाल का भाषण गलत नहीं है । मधेशवादी दल भी वैसा संविधान नहीं चाहता जिसमें संघीयता नहीं हो । दलित, पिछडÞा वर्ग, अल्पसंख्यक, मुस्लिम समुदाय का अधिकार कुण्ठित किया गया हो । खनाल ने जो कहा है उस बात को मधेशवादी दल को गम्भीरता से लेना होगा । काँग्रेस-एमाले के गठबन्धन की सरकार दावा कर रही है कि किसी भी हालत में माघ ८ गते तक संविधान लागू होगा । यह तो अच्छी बात है । लेकिन संविधान विवाद रहित होना चाहिए ताकि फिर से देश को किसी प्रकार का नुकसान नहीं हो ।

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