कैलास दास
२०६९ बैशाख १८ गते का जनकपुर बम काण्ड रहस्यमय बनती जा रही है । नेपाल की सबसे बडी घटना रही जनकपुर का बम बिष्फोट जिनमे एक साथ पाँच पाँच लोगों की मौत हुई और दर्जनौं घायल हुए । बन्द, हडताल, नारा जुलस के वावजुद भी नेपाल सरकार उदासिन रही । पुलिस प्रशासन भी घटना की सत्य तथ्य नही निकाल पाया वा उसके उपर राजनीतिक दवाव है की पैसे का खेल बहुत ही गम्भीर प्रश्न रही है ।
लेकिन हा, गृह युद्ध जैसी ‘जनकपुर बम काण्ड’ को गुमराह कर रखना आने वाले भविष्य कही एक इतिहास न रच दे कि ‘मिथिला राज्य’ को माँग कर आन्दोलनरत स्थानो पर किसके द्वारा और क्यो इतनी बडी बरदात कराई गई । और फिर घटनाको रहस्यमय बना कर रखा गया ।
लोकतन्त्र मे मौलिक अधिकार के लिए आवाज उठाना सबका समान अधिकार है । लेकिन उस आवाज को गुमराह वा बन्द कर देने की जिसने भी साजिस की उसे छानबिन कर कानूनी दण्ड देना सरकार का कर्तव्य होता, न कि मौत के बाद शहीद घोषणा और प्रत्येक शहीद को दस दस लाख रुपैया देकर रफादफा कर देना । वैसे भी नेपाल मे शहीदो की कमी नही है अर्थात् शहीद घोषणा अब समान्य बन चुकी है ।
जनकपुर बम काण्ड का आठ महिना वित चुका लेकिन न तो सरकार अपनी ओर से इस घटना की अनुसन्धान कहाँ तक पहुँची सार्वजनिक की और ना ही इस घटना की अगुवाई कर रही ‘मिथिला राज्य संघर्ष समिति’ दवाव दिया । घटना पश्चात समिति का आन्दोलन रही मृतकों को शहीद घोषण और क्षतिपूर्ति वापत १० लाख रुपैया माँग, जिसे सरकार ने पुरा की । शायद इसलिए समिति ने घटना के छानबिन एवं दोषी उपर कारवाही का आन्दोलन वा दवाव के आवश्यकता सम्झा नही । इस पर सवाल उठता है बम बिष्फोट से हुई मौत के वाद शहीद घोषणा और दस लाख रुपैया दिलाने के लिए आन्दोलन की गई थी तो कुछ नही कहना है । लेकिन अपनी पहिचान और अधिकार के लडाई के साथ ही इतनी बडी वारदात कराने वा करने वाले को न्यायिक कठघेरा मे लाने की बात है तो सरकार वा प्रशासन उपर ‘मिथिला राज्य संघर्ष समिति’ ने बराबर दवाव बना कर क्यो नही रखा ।
भाषा, कला संस्कृति एवं क्षेत्रफल के आधार पर ‘मिथिला राज्य’ का आन्दोलन चल रहा था, और इसकी अगुवाई मिथिला राज्य संघर्ष समिति कर रही थी । बैशाख १८ गते सोमवार सुबह १० बजे होगें, मिथिला राज्य संघर्ष समिति जनकपुर के रामानन्द चौक पर धर्ना चल रहा था । धर्ना के नजदीक ही एक मोटरसाइकिल रखी थी जिसमे बम फिट था, बम बिष्फोट हुई और महिला रंगकर्मी रञ्जु झा, विमल शरण, सुरेश उपाध्याय, झगरु दास और दीपेन्द्र दास को मौत हो गई, दर्जनौं लोग घायल हो गए ।
मधेश के अधिकार दिलाने के वास्ते भूमिगत होकर लड रही सशस्त्र समूह धारियो ने अपनी अपनी ढंग से जिम्मेवारी ली । किसी ने कहाँ मधेश को टुक्रा करने की चाल रही है इसी लिए मैने बम बिष्फोट कराया तो किसी ने कही स्वयत मधेश एक प्रदेश के विरोध मे जाने वाले के लिए ये हमारी चेतावनी की आवाज थी । उस समय वास्तव मे कहाँ जाए तो मधेश मे रहने वाले आम जनता सशस्त्र समूहो की ये बारदात को लेकर बहुत ही आक्रोशित था । बहुत सारे शंका उपशांका किया जा रहा था ।
सरकार के विरुद्ध भी नारा जुलुस किया गया । लोग विभिन्न किसिम का अफवाह मे फसता रहा कि राज्य पक्ष से ही तो नही ऐसी घटना घटाई गई है । करिबन एक सप्ताह तक आन्दोलन भी जोरतोड से चली । फिर सरकार ने बम बिष्फोट मे मौत हुए पाँचौ को शहीद घोषणा और दस दस लाख रुपैया देकर आन्दोलन शान्त कर दी ।
जहाँ तक घटना की अनुसन्धान की बात है प्रशासन ने प्रेस कन्फ्रेन्स कर बम कण्ड का आरोपीं जय प्रकार चौधरी, मुकेश कुमार कर्ण, रिपेन्द्र झा (छोटु) तथा सुरेश कुमार कर्ण को सार्वजनिक भी की और इस घटना का नाम ‘रामा अप्रेशन’ रखा । प्रेस कन्फ्रेन्स मे उन्होने कहाँ बम बिष्फोट मधेश का सशस्त्र समूह धारी ने कराई है और इसका मुख्य योजनाकार मुकेश चौधरी है जो भारत छुपी है । लेकिन जल्द ही दुसरी प्रेस कन्फ्रेन्स मे जनकपुर बम काण्ड का सत्यतथ्य घटना सार्वजनिक करेगें । फिलहाल अभी का अनुसन्धन मे जिला विकास समिति का सहलेखापाल जीवनाथ चौधरी को मारने की टार्गेट बनाया गया प्रष्ट की थी ।
प्रहरी के ही बयान अनुसार सवाल ये भी उठता है कि एक व्यक्ति के मारने के लिए इतनी बडी बारदात को आवश्यकता क्या हो सकता है । उस समय आम जनता मे बडा ही कोतुहलता मच्ची थी । लोग ये भी कह रहे थे की तराई का सशस्त्र समूह मे इतनी ताकत नही जो इतनी बडी बारदात कर सकता है, आवश्य कोई राजनीतिक चाल होगी ।
पुलिस अनुसन्धान प्रेस कन्फ्रेन्स मे भी अधुरा लग रहा था । सशस्त्र समूह धारी ने बम बिष्फोट से कुछ समय पहिले अपने साथीयो को एसएमएस द्वारा की गई बाते सर्वजनिक तो की लेकिन कहाँ कहाँ उसका लिंक था छुपा कर रखा । प्रशासन द्वारा सत्यतथ्य घटना को सार्वजनिक और दोषी की कारवाई की प्रतिक्षा मे आठ महिना वित चुका लेकिन प्रशासन मौन और अपदस्त रहे ।
लेकिन हा, अगहन का अन्तिम सप्ताह और माघ का प्रारम्भ मे ‘जनकपुर बम काण्ड’ घटना को और रहस्यमय बना दिया । तराई टेलिभिजन ने एक भिडियो क्लीप प्रसारण की जिसमे बम काण्ड की वारदात के साथ ही धनुषा का सभासद एवं पूर्व राज्यमन्त्री संजय कुमार साह जैसा आवाज सुनाई देता है । वो इस प्रकार है एक व्यक्ति बोलता है ‘मन्त्री जी बोल रहे है ।’ फिर से उत्तर है ‘हा... हम बोल रहे है’ फिर वो व्यक्ति बोलता है ‘ बहुत भीड है, एक डेढ सौ आदमी है, वही हम अपने आदमी से बैठा देले ?’दुसरा आवाज ‘नही—नही भीड मे नही करला ?’ अर्थात कुछ हिन्दी और कुछ भोजपुरी मिक्स जैसा आवाज है । वैसे बम बिष्फोट के कुछ ही दिन बाद इन्टरनेट के यू.टू साइड और मधेश बाणी मे भी भिडियो क्लीप रखा गया था । अर्थात् कहने का मतलव नेपाली की सबसे बडी वारदात होने के वाद भी प्रशासनीय अनुसन्धान क्यो पिछे है । ये घटना मे राजनीतिक तार जुडी है वा किसी गैंगवार ने मोटी रकम खर्च कर दवाने की प्रयास कर रही है ।
इधर मधेश क्रान्ति फोरम ने प्रेस कन्सफ्रेन्स कर ‘काँल डिटेल्स’ सार्वजनिक की है । जिसमे जिल्ला प्रशासन कार्यालय धनुषा का साही छाप लगी है । उस ‘काँल डिटेल्स’ मे बम काण्ड का मुख्य योजनाकार मुकेश चौधरी ने विभिन्न मिति और समय मे विभिन्न व्यक्ति से बातचित की है । ‘काँल डिटेल्स’ मे मिथिला राज्य संघर्ष समिति का सदस्य एवं सह लेखापाल जीवनाथ चौधरी सहित पत्रकारो का भी मोवाइल नम्वर है । बम बिष्फोट का मुख्य योजनाकार मुकेश चौधरी ने बम बिष्फोट से पहले और उसके वाद भी चौधरी से सात बार फोन पर बातचित की उल्लेख है । वैसे जिला प्रहरी कार्यालय धनुषा ने जिला अदालत धनुषा मे ६० पेज का ‘काँल डिटेल’ पठाया था । लेकिन मधेश क्रान्ति फोरम तीन पृष्ठ का ‘काँल डिटेल’ मात्र सार्वजनिक की है । अन्य कौन कौन व्यक्ति से मुकेश चौधरी का बातचित हुई है अभी भी रहस्यमय है ।
जनकपुर बम काण्ड का रहस्य जिस तरह से बढती जा रही है जनकपुर का जनता भयभित बनती जा रही है । अब ये कहना मुस्किल हो चुका है कि जनकपुर बम काण्ड का असली जिम्मेवार कौन है । ‘काँल डिटेल्स’ दिखाया गया समिति का सदस्य चौधरी वा सभासद साह या यु के तो किसी ने दोनो के साथ चाल चलकर घटना को खेलाना तो नही चहता है । लेकिन जो भी हो सरकारी निकाय इस प्रति बिलकुले गम्भीर नही दिख रही है ।
सही मायने मे कहाँ जाए तो लोग अब लोकतन्त्र मे भी अधिकार की लड से कतराती है । एक को मारता है तो दुसरा देखते ही रह जाना अपनी भलाई समझता है । और इसका एक कारण ‘कानून विहीन राज्य’ । राज्य का प्रथम अङ्ग देश का प्रधानमन्त्री होता है जिस पर देश की सम्पूर्ण जिम्मेवारी होती है और उसी का स्टेटमेन्ट कानूनी दायरा से बाहर की हो तो आम जनता कभी भी अपने आप को सुरक्षित और अमन चयन का कल्पना नही कर सकता । ये दैलेख का पत्रकार डेकेन्द्र राज थापा को माओवादी द्वन्द्वकालमे जिन्दा दफनाया गया और दफनाने वाले आरोपी ने स्वीकार भी कर ली उसके वाद भी प्रधानमन्त्री द्वारा ‘आम माफी’ वा कारवाई की कोई भी प्रक्रिया आगे नही बढेगा जैसा स्टेटमेन्ट से जनता असुरक्षित महसुस करने लगी है ।
हिमालिनी हिन्दी मासिक पत्रिका में पूर्व प्रकाशित
२०६९ बैशाख १८ गते का जनकपुर बम काण्ड रहस्यमय बनती जा रही है । नेपाल की सबसे बडी घटना रही जनकपुर का बम बिष्फोट जिनमे एक साथ पाँच पाँच लोगों की मौत हुई और दर्जनौं घायल हुए । बन्द, हडताल, नारा जुलस के वावजुद भी नेपाल सरकार उदासिन रही । पुलिस प्रशासन भी घटना की सत्य तथ्य नही निकाल पाया वा उसके उपर राजनीतिक दवाव है की पैसे का खेल बहुत ही गम्भीर प्रश्न रही है ।
लेकिन हा, गृह युद्ध जैसी ‘जनकपुर बम काण्ड’ को गुमराह कर रखना आने वाले भविष्य कही एक इतिहास न रच दे कि ‘मिथिला राज्य’ को माँग कर आन्दोलनरत स्थानो पर किसके द्वारा और क्यो इतनी बडी बरदात कराई गई । और फिर घटनाको रहस्यमय बना कर रखा गया ।
लोकतन्त्र मे मौलिक अधिकार के लिए आवाज उठाना सबका समान अधिकार है । लेकिन उस आवाज को गुमराह वा बन्द कर देने की जिसने भी साजिस की उसे छानबिन कर कानूनी दण्ड देना सरकार का कर्तव्य होता, न कि मौत के बाद शहीद घोषणा और प्रत्येक शहीद को दस दस लाख रुपैया देकर रफादफा कर देना । वैसे भी नेपाल मे शहीदो की कमी नही है अर्थात् शहीद घोषणा अब समान्य बन चुकी है ।
जनकपुर बम काण्ड का आठ महिना वित चुका लेकिन न तो सरकार अपनी ओर से इस घटना की अनुसन्धान कहाँ तक पहुँची सार्वजनिक की और ना ही इस घटना की अगुवाई कर रही ‘मिथिला राज्य संघर्ष समिति’ दवाव दिया । घटना पश्चात समिति का आन्दोलन रही मृतकों को शहीद घोषण और क्षतिपूर्ति वापत १० लाख रुपैया माँग, जिसे सरकार ने पुरा की । शायद इसलिए समिति ने घटना के छानबिन एवं दोषी उपर कारवाही का आन्दोलन वा दवाव के आवश्यकता सम्झा नही । इस पर सवाल उठता है बम बिष्फोट से हुई मौत के वाद शहीद घोषणा और दस लाख रुपैया दिलाने के लिए आन्दोलन की गई थी तो कुछ नही कहना है । लेकिन अपनी पहिचान और अधिकार के लडाई के साथ ही इतनी बडी वारदात कराने वा करने वाले को न्यायिक कठघेरा मे लाने की बात है तो सरकार वा प्रशासन उपर ‘मिथिला राज्य संघर्ष समिति’ ने बराबर दवाव बना कर क्यो नही रखा ।
भाषा, कला संस्कृति एवं क्षेत्रफल के आधार पर ‘मिथिला राज्य’ का आन्दोलन चल रहा था, और इसकी अगुवाई मिथिला राज्य संघर्ष समिति कर रही थी । बैशाख १८ गते सोमवार सुबह १० बजे होगें, मिथिला राज्य संघर्ष समिति जनकपुर के रामानन्द चौक पर धर्ना चल रहा था । धर्ना के नजदीक ही एक मोटरसाइकिल रखी थी जिसमे बम फिट था, बम बिष्फोट हुई और महिला रंगकर्मी रञ्जु झा, विमल शरण, सुरेश उपाध्याय, झगरु दास और दीपेन्द्र दास को मौत हो गई, दर्जनौं लोग घायल हो गए ।
मधेश के अधिकार दिलाने के वास्ते भूमिगत होकर लड रही सशस्त्र समूह धारियो ने अपनी अपनी ढंग से जिम्मेवारी ली । किसी ने कहाँ मधेश को टुक्रा करने की चाल रही है इसी लिए मैने बम बिष्फोट कराया तो किसी ने कही स्वयत मधेश एक प्रदेश के विरोध मे जाने वाले के लिए ये हमारी चेतावनी की आवाज थी । उस समय वास्तव मे कहाँ जाए तो मधेश मे रहने वाले आम जनता सशस्त्र समूहो की ये बारदात को लेकर बहुत ही आक्रोशित था । बहुत सारे शंका उपशांका किया जा रहा था ।
सरकार के विरुद्ध भी नारा जुलुस किया गया । लोग विभिन्न किसिम का अफवाह मे फसता रहा कि राज्य पक्ष से ही तो नही ऐसी घटना घटाई गई है । करिबन एक सप्ताह तक आन्दोलन भी जोरतोड से चली । फिर सरकार ने बम बिष्फोट मे मौत हुए पाँचौ को शहीद घोषणा और दस दस लाख रुपैया देकर आन्दोलन शान्त कर दी ।
जहाँ तक घटना की अनुसन्धान की बात है प्रशासन ने प्रेस कन्फ्रेन्स कर बम कण्ड का आरोपीं जय प्रकार चौधरी, मुकेश कुमार कर्ण, रिपेन्द्र झा (छोटु) तथा सुरेश कुमार कर्ण को सार्वजनिक भी की और इस घटना का नाम ‘रामा अप्रेशन’ रखा । प्रेस कन्फ्रेन्स मे उन्होने कहाँ बम बिष्फोट मधेश का सशस्त्र समूह धारी ने कराई है और इसका मुख्य योजनाकार मुकेश चौधरी है जो भारत छुपी है । लेकिन जल्द ही दुसरी प्रेस कन्फ्रेन्स मे जनकपुर बम काण्ड का सत्यतथ्य घटना सार्वजनिक करेगें । फिलहाल अभी का अनुसन्धन मे जिला विकास समिति का सहलेखापाल जीवनाथ चौधरी को मारने की टार्गेट बनाया गया प्रष्ट की थी ।
प्रहरी के ही बयान अनुसार सवाल ये भी उठता है कि एक व्यक्ति के मारने के लिए इतनी बडी बारदात को आवश्यकता क्या हो सकता है । उस समय आम जनता मे बडा ही कोतुहलता मच्ची थी । लोग ये भी कह रहे थे की तराई का सशस्त्र समूह मे इतनी ताकत नही जो इतनी बडी बारदात कर सकता है, आवश्य कोई राजनीतिक चाल होगी ।
पुलिस अनुसन्धान प्रेस कन्फ्रेन्स मे भी अधुरा लग रहा था । सशस्त्र समूह धारी ने बम बिष्फोट से कुछ समय पहिले अपने साथीयो को एसएमएस द्वारा की गई बाते सर्वजनिक तो की लेकिन कहाँ कहाँ उसका लिंक था छुपा कर रखा । प्रशासन द्वारा सत्यतथ्य घटना को सार्वजनिक और दोषी की कारवाई की प्रतिक्षा मे आठ महिना वित चुका लेकिन प्रशासन मौन और अपदस्त रहे ।
लेकिन हा, अगहन का अन्तिम सप्ताह और माघ का प्रारम्भ मे ‘जनकपुर बम काण्ड’ घटना को और रहस्यमय बना दिया । तराई टेलिभिजन ने एक भिडियो क्लीप प्रसारण की जिसमे बम काण्ड की वारदात के साथ ही धनुषा का सभासद एवं पूर्व राज्यमन्त्री संजय कुमार साह जैसा आवाज सुनाई देता है । वो इस प्रकार है एक व्यक्ति बोलता है ‘मन्त्री जी बोल रहे है ।’ फिर से उत्तर है ‘हा... हम बोल रहे है’ फिर वो व्यक्ति बोलता है ‘ बहुत भीड है, एक डेढ सौ आदमी है, वही हम अपने आदमी से बैठा देले ?’दुसरा आवाज ‘नही—नही भीड मे नही करला ?’ अर्थात कुछ हिन्दी और कुछ भोजपुरी मिक्स जैसा आवाज है । वैसे बम बिष्फोट के कुछ ही दिन बाद इन्टरनेट के यू.टू साइड और मधेश बाणी मे भी भिडियो क्लीप रखा गया था । अर्थात् कहने का मतलव नेपाली की सबसे बडी वारदात होने के वाद भी प्रशासनीय अनुसन्धान क्यो पिछे है । ये घटना मे राजनीतिक तार जुडी है वा किसी गैंगवार ने मोटी रकम खर्च कर दवाने की प्रयास कर रही है ।
इधर मधेश क्रान्ति फोरम ने प्रेस कन्सफ्रेन्स कर ‘काँल डिटेल्स’ सार्वजनिक की है । जिसमे जिल्ला प्रशासन कार्यालय धनुषा का साही छाप लगी है । उस ‘काँल डिटेल्स’ मे बम काण्ड का मुख्य योजनाकार मुकेश चौधरी ने विभिन्न मिति और समय मे विभिन्न व्यक्ति से बातचित की है । ‘काँल डिटेल्स’ मे मिथिला राज्य संघर्ष समिति का सदस्य एवं सह लेखापाल जीवनाथ चौधरी सहित पत्रकारो का भी मोवाइल नम्वर है । बम बिष्फोट का मुख्य योजनाकार मुकेश चौधरी ने बम बिष्फोट से पहले और उसके वाद भी चौधरी से सात बार फोन पर बातचित की उल्लेख है । वैसे जिला प्रहरी कार्यालय धनुषा ने जिला अदालत धनुषा मे ६० पेज का ‘काँल डिटेल’ पठाया था । लेकिन मधेश क्रान्ति फोरम तीन पृष्ठ का ‘काँल डिटेल’ मात्र सार्वजनिक की है । अन्य कौन कौन व्यक्ति से मुकेश चौधरी का बातचित हुई है अभी भी रहस्यमय है ।
जनकपुर बम काण्ड का रहस्य जिस तरह से बढती जा रही है जनकपुर का जनता भयभित बनती जा रही है । अब ये कहना मुस्किल हो चुका है कि जनकपुर बम काण्ड का असली जिम्मेवार कौन है । ‘काँल डिटेल्स’ दिखाया गया समिति का सदस्य चौधरी वा सभासद साह या यु के तो किसी ने दोनो के साथ चाल चलकर घटना को खेलाना तो नही चहता है । लेकिन जो भी हो सरकारी निकाय इस प्रति बिलकुले गम्भीर नही दिख रही है ।
सही मायने मे कहाँ जाए तो लोग अब लोकतन्त्र मे भी अधिकार की लड से कतराती है । एक को मारता है तो दुसरा देखते ही रह जाना अपनी भलाई समझता है । और इसका एक कारण ‘कानून विहीन राज्य’ । राज्य का प्रथम अङ्ग देश का प्रधानमन्त्री होता है जिस पर देश की सम्पूर्ण जिम्मेवारी होती है और उसी का स्टेटमेन्ट कानूनी दायरा से बाहर की हो तो आम जनता कभी भी अपने आप को सुरक्षित और अमन चयन का कल्पना नही कर सकता । ये दैलेख का पत्रकार डेकेन्द्र राज थापा को माओवादी द्वन्द्वकालमे जिन्दा दफनाया गया और दफनाने वाले आरोपी ने स्वीकार भी कर ली उसके वाद भी प्रधानमन्त्री द्वारा ‘आम माफी’ वा कारवाई की कोई भी प्रक्रिया आगे नही बढेगा जैसा स्टेटमेन्ट से जनता असुरक्षित महसुस करने लगी है ।
हिमालिनी हिन्दी मासिक पत्रिका में पूर्व प्रकाशित
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