कैलास दास
नेपाल की राजनीति को जितनी भी ब्याख्या क्यो न करे, बहुत ही कम होगा । राणा शासन और राजतन्त्र मे एकलौटी शासन थी इस लिए आम जनता शायद राजनीति खुलापन से वञ्चित रहे । परन्तु प्रजातन्त्र के वाद गणतन्त्र मे इस प्रकार राजनीति हावी हुई की देश ही अस्थिरता की ओर है । जब तक देश मे राजनीतिक द्वन्द्व खत्म नही होगी नेपाली जनता कभी भी अपने आप को सुरक्षित महसुस नही कर पाऐगें । और इसके लिए ‘मुख मे राम राम बगल मे छुरी’ की राजनीति करने वाले नेताओं को पहिचान आवश्यक है ।
बडी असमञ्जस्ता की बात तो ये है कि अब तो जनता ने भी नेताओं पर विश्वास करना छोड दी है । बिना नीति की राजनीति असफल होना स्वभाविक है । फिर तो यहाँ के नेताओं ने हमेशा अपने ही अवसर की खोजी मे रही । नेताओं को जनता प्रति की भावना हमेसा बनी रही है ‘अपना काम बनता, भाँड मे जाए जनता ।’ अर्थात् जनता के भावनाओं को कुचलने के सिवाय कुछ दिया ही नही । सरकार मे रही तो महँगी, भ्रष्टाचारी के पृष्ट पोषण मे लिप्त रही । सरकार से बाहर हुए तो हम जनता के साथ है, रहेगें । अधिकार के लिए सडक आन्दोलन, भूख हडताल, नाराबाजी, तोडफोड कर अपनी शक्ति प्रदर्शन करती है । नेपाली आम जनता भी बडे ही भोले है जो इस राजनीतिकर्मी की क्रियाकलाप को अभी तक सम्झ से बाहर रखी है ।
२०६२ जेष्ठ १४ गते संविधान सभा की चुनाव हुई । जनता ने सबसे अधिक आशा की सम्पन्न राष्ट्र निर्माण का । वैसा संविधान का जिनमे प्रत्येक समुदाय का अधिकार सुनिश्चित हो । राजनीतिक भेदभाव न रहे । अपना ही देश मे रोजगारी मिले । शिक्षा की गुणस्तरीयता अन्तर्राष्ट्रिय स्तर की हो । अपना देश मे उत्पादन शक्ति बढे । दक्ष जनशक्ति की दक्षता पर नाज हो यादि इत्यादी । परन्तु ऐसा कुछ नही हुआ । अपने आप को शक्तिशाली दल कहलाने वाला एकीकृत नेकपा माओवादी, नेपाली काँग्रेस, एमाले सहित सबके सब जनता के सामने झुठा सावित हुए । नेपाली जनता ने छोटे बडे सभी राजनीति दलो पर भरोसा की लेकिन नेपाल मे एक कहावत है ‘जुन जोगी आयो कानै चिरे को ’ सरकार मे जो भी आए जनता प्रति की भावना वही रही ।
जनता अब नेपाल की राजनीति से तंग हो चुकी है । न तो उन्हे अब किसी दल की सरकार पर भरोसा है और न ही विश्वास है कि कोई भी राजनीतिक दल वर्तमान संकट को निकास दे सकेगा । दो वर्ष के लिए चुना गया संविधान सभा का समय चार वर्ष तक राजनीतिक दल ने इसे अपनी पुस्तैनी सम्पति सम्झकर नेपाली जनता के साथ खेलवाड की है । लेकिन जनता अब दलगत राजनीतिकर्मी से उब गई है ।
कुछ ही दिन पहले राजधानी सहित देश के विभिन्न स्थानो पर नेपाली काँग्रेस, एमाले सहित नौ दल ने संयुक्त रुप से विरोध सभा आयोजना की थी । जिनमे नेताओं को दावी था की पाँच लाख जनता सहभागी होगें । परन्तु बीस से पच्चीस हजार कार्यकर्ता के बीच कार्यक्रम समापन करनी पडी । मधेशी दलों का भी वही हाल रहा जो बडे दलों का है ।
सही मायने मे कहाँ जाए तो प्रजातन्त्र वा लोकतन्त्र की अनुभूति नेपाली जनता ने वैदेशिक रोजगारी से मात्र पाई है । भले ही वैदेशिक रोजगारी से नेपाल सरकार को सबसे ज्यादा टैक्स आता होगा । नेपाली जनता अपने आप को कुछ राहत महसुस कर रही होगी । लोकिन सोचने वाली बात ये भी है कि इससे हमारे देश की जनशक्ति खत्म हो रही है । नेपाल भूमि मरुभूमी बनती जा रही है । अपना श्रम विदेश मे बेचने के वाद भी सम्पन्न राष्ट्र की कल्पना मुस्किल है । और इसे नियन्त्रण के लिए सरकार बेफिक्र है तो जनता को दवाव देना होगा ।
हमारी अर्थतन्त्र इतनी कमजोर हो चुकी है कि पानी है विजुली उत्पादन करने के लिए अर्थ नही । कृषि के लिए भूमि है परन्तु मल खाद्य नही । खेत मे काम करने के लिए मजदुर नही । चारो तर्फ वन जंगल है लेकिन इनकी संरक्षण की चिन्ता नही । गौर से देखा जाए तो वैदेशिक रोजगारी से कई प्रकार की नोक्सान है । शिक्षा आर्जन के समय हम वैदेशिक रोजारी के लिए खाडी मुलुक चले जाते है । अपने देश मे बेरोजगार है तो विदेशों मे शोषण दमन । सबसे बडी लज्जा की बात तो ये है कि मजदुरी के लिए महिलाओं को भी नेपाल सरकार वैदेशिक रोजगारी मे भेज रही है । जहाँ श्रम शोषण के साथ साथ यौन शोषण भी होता है । अनेकों घटना मिडिया मे आने के वाद भी सरकार अभी तक किसी प्रकार का कदम नही ली है ।
मधेश तराई फोरम ने एक तथ्यांक प्रस्तुुुुत की जिसमे २०६६÷०६७ का गणना अनुसार नेपाल की जनसंख्या २ करोड ६४ लाख ९४ हजार ५ सौ ४ है । प्रतिशत के अनुसार ४०.९६ प्रतिशत नेपाली जनता अपने देश मे बस रही है तो ५९.४ प्रतिशत जनता वैदेशिक रोजगारी मे है । नेपाल से प्रत्येक दिन ३ हजार से ३५ सय तक वैदेशिक रोजागरी मे नेपाली जनता जाते और आते है । कभी कभी तो ये सुनने को आता है रोजगारी मे गए फलाने जिला का फलाने व्यक्ति ने आत्म हत्या कर ली है वा काज करते वक्त सिढी से गीर कर मौत हो गई और उसका लास एयरपोर्ट मे रखी है । जिसका नेपाल सरकार के पास किसी प्रकार की लेखाजोखा नही है और नही इसकी क्षतिपूर्ति पीडित परिवार को देने का प्रावधान है कि नही शायदे किसी को मालुम होगा । कुछ वर्ष पहले कतार मे १२ नेपाली कामदार को एक सशस्त्र समूह ने गोली मार कर हत्या कर दी । इसका भिजुवल क्लीप संसार भर की लोगों ने देखा होगा । कुछ दिने तक विरोध तो आवश्यक हुई, परन्तु विरोध मृतक की आत्मा को शान्ति तक सिमटकर रह गया ।
वैदेशिक रोजागरी मे नेपाली जनता को भेजने से पहले नेपाल सरकारको एक सीमा निर्धारण करने की आवश्यकता है । दो देशो बीच ठोस सम्झौता होनी चाहिए जिसकी जानकारी प्रत्येक नेपाली कामदार को दी जाए । इसके साथ वैदेशिक रोजगारी मे जानेवाले दक्ष एवं सीप मुलक व्यक्ति होनी चाहिए । शिक्षा की निर्धारित मापदण्ड हो । एक वर्ष से ज्यादा विदेशो मे रहने की इजाजत न दी जाए । महिलाओं को कामदार के रुपमे विदेश जाने से रोका जाए । दक्ष महिलाओं को विशेष निगरानी और सरकारी प्रावधान के तहत भिषा उपलब्ध की जाए । रोजगार मे जाने वालो को तलव और ओभरटाइम नेपाल सरकार अपने अधिन मे निर्धारण करें । जाते वक्त लगी रकम नेपाल सरकारी अपनी बजेट मे छुट्याए और बाद मे किस्तावन्दी मे कटौती करे । तब नेपाली जनता के ही नही नेपाल के विकास मे भी अग्रसरता होगी ।
वैदेशिक रोजगारी से आए व्यक्ति को व्यवसायी करने के लिए न्यूनतम ब्याज दर पर ऋण की व्यवस्था पनि होनी चाहिए । ताकि अपने आप को कभी वो लोग बेरोजगार नही सम्झे । इससे जनशक्ति की अभाव भी नही होगी और देश उत्पादन शक्ति की ओर बढेगा ।
दूसरी बात व्यवसायी का है । दुसरो देश के साथ इस प्रकार की व्यवसायी की जाए ताकी नेपाली जनता भी सरल और असानी से उसका उपभोग कर सके । फिलहाल नेपाल सरकार अभी अलग अलग देश को समान पर अलग अलग कर रखी है । जिसका प्रत्यक्ष असर नेपाली जनता पर पडती देखाई देती है । जनकपुर भन्सार कार्यालय का रामगुलाम यादव के शब्दो मे कहाँ जाए तो नेपाल और भारत के कला—संस्कृति, भेष—भूषा, रहन—सहन तथा विता हुए इतिहास भी एक जैसा ही है । लेकिन व्यवसायीक दृष्टि से देखा जाए तो दोनो मे आकाश पताल की अन्तर है । जो वस्तुए भारत मे एक से डेढ लाख मे भारतीय जनता प्रयोग कर रही है वही वस्तु को नेपाल मे दस से बारह लाख मे उपलब्ध होती है । इस पर नेपाल और भारत सरकार को भी ध्यान देनी होगी ।
नेपाल को विकास वैदेशिक टैक्स वा अन्य टैक्स दो वा चार गुणी करने से नही होगा । इसके लिए स्वदेश मे ही रोजगारी की व्यवस्था करे । चाहे वो कृषि मे करे वा पशुपालन । वैसे तो वन जंगल की संरक्षण कर दूसरो देश मे जडीबुटी की व्यवसाय । जल की सही उपयोग कर विद्युत उत्पादन करे जिनमे नेपाली जनता को भी रोजगारी मिले । इससे अपना ही देश मे सम्पन्नता होगी । इसके लिए राजनीतिक दल को विकास की राजनीति करनी होगी जो फिलहाल भारत के बिहार स्पष्ट उदाहरण बनी है ।
नेपाल की राजनीति को जितनी भी ब्याख्या क्यो न करे, बहुत ही कम होगा । राणा शासन और राजतन्त्र मे एकलौटी शासन थी इस लिए आम जनता शायद राजनीति खुलापन से वञ्चित रहे । परन्तु प्रजातन्त्र के वाद गणतन्त्र मे इस प्रकार राजनीति हावी हुई की देश ही अस्थिरता की ओर है । जब तक देश मे राजनीतिक द्वन्द्व खत्म नही होगी नेपाली जनता कभी भी अपने आप को सुरक्षित महसुस नही कर पाऐगें । और इसके लिए ‘मुख मे राम राम बगल मे छुरी’ की राजनीति करने वाले नेताओं को पहिचान आवश्यक है ।
बडी असमञ्जस्ता की बात तो ये है कि अब तो जनता ने भी नेताओं पर विश्वास करना छोड दी है । बिना नीति की राजनीति असफल होना स्वभाविक है । फिर तो यहाँ के नेताओं ने हमेशा अपने ही अवसर की खोजी मे रही । नेताओं को जनता प्रति की भावना हमेसा बनी रही है ‘अपना काम बनता, भाँड मे जाए जनता ।’ अर्थात् जनता के भावनाओं को कुचलने के सिवाय कुछ दिया ही नही । सरकार मे रही तो महँगी, भ्रष्टाचारी के पृष्ट पोषण मे लिप्त रही । सरकार से बाहर हुए तो हम जनता के साथ है, रहेगें । अधिकार के लिए सडक आन्दोलन, भूख हडताल, नाराबाजी, तोडफोड कर अपनी शक्ति प्रदर्शन करती है । नेपाली आम जनता भी बडे ही भोले है जो इस राजनीतिकर्मी की क्रियाकलाप को अभी तक सम्झ से बाहर रखी है ।
२०६२ जेष्ठ १४ गते संविधान सभा की चुनाव हुई । जनता ने सबसे अधिक आशा की सम्पन्न राष्ट्र निर्माण का । वैसा संविधान का जिनमे प्रत्येक समुदाय का अधिकार सुनिश्चित हो । राजनीतिक भेदभाव न रहे । अपना ही देश मे रोजगारी मिले । शिक्षा की गुणस्तरीयता अन्तर्राष्ट्रिय स्तर की हो । अपना देश मे उत्पादन शक्ति बढे । दक्ष जनशक्ति की दक्षता पर नाज हो यादि इत्यादी । परन्तु ऐसा कुछ नही हुआ । अपने आप को शक्तिशाली दल कहलाने वाला एकीकृत नेकपा माओवादी, नेपाली काँग्रेस, एमाले सहित सबके सब जनता के सामने झुठा सावित हुए । नेपाली जनता ने छोटे बडे सभी राजनीति दलो पर भरोसा की लेकिन नेपाल मे एक कहावत है ‘जुन जोगी आयो कानै चिरे को ’ सरकार मे जो भी आए जनता प्रति की भावना वही रही ।
जनता अब नेपाल की राजनीति से तंग हो चुकी है । न तो उन्हे अब किसी दल की सरकार पर भरोसा है और न ही विश्वास है कि कोई भी राजनीतिक दल वर्तमान संकट को निकास दे सकेगा । दो वर्ष के लिए चुना गया संविधान सभा का समय चार वर्ष तक राजनीतिक दल ने इसे अपनी पुस्तैनी सम्पति सम्झकर नेपाली जनता के साथ खेलवाड की है । लेकिन जनता अब दलगत राजनीतिकर्मी से उब गई है ।
कुछ ही दिन पहले राजधानी सहित देश के विभिन्न स्थानो पर नेपाली काँग्रेस, एमाले सहित नौ दल ने संयुक्त रुप से विरोध सभा आयोजना की थी । जिनमे नेताओं को दावी था की पाँच लाख जनता सहभागी होगें । परन्तु बीस से पच्चीस हजार कार्यकर्ता के बीच कार्यक्रम समापन करनी पडी । मधेशी दलों का भी वही हाल रहा जो बडे दलों का है ।
सही मायने मे कहाँ जाए तो प्रजातन्त्र वा लोकतन्त्र की अनुभूति नेपाली जनता ने वैदेशिक रोजगारी से मात्र पाई है । भले ही वैदेशिक रोजगारी से नेपाल सरकार को सबसे ज्यादा टैक्स आता होगा । नेपाली जनता अपने आप को कुछ राहत महसुस कर रही होगी । लोकिन सोचने वाली बात ये भी है कि इससे हमारे देश की जनशक्ति खत्म हो रही है । नेपाल भूमि मरुभूमी बनती जा रही है । अपना श्रम विदेश मे बेचने के वाद भी सम्पन्न राष्ट्र की कल्पना मुस्किल है । और इसे नियन्त्रण के लिए सरकार बेफिक्र है तो जनता को दवाव देना होगा ।
हमारी अर्थतन्त्र इतनी कमजोर हो चुकी है कि पानी है विजुली उत्पादन करने के लिए अर्थ नही । कृषि के लिए भूमि है परन्तु मल खाद्य नही । खेत मे काम करने के लिए मजदुर नही । चारो तर्फ वन जंगल है लेकिन इनकी संरक्षण की चिन्ता नही । गौर से देखा जाए तो वैदेशिक रोजगारी से कई प्रकार की नोक्सान है । शिक्षा आर्जन के समय हम वैदेशिक रोजारी के लिए खाडी मुलुक चले जाते है । अपने देश मे बेरोजगार है तो विदेशों मे शोषण दमन । सबसे बडी लज्जा की बात तो ये है कि मजदुरी के लिए महिलाओं को भी नेपाल सरकार वैदेशिक रोजगारी मे भेज रही है । जहाँ श्रम शोषण के साथ साथ यौन शोषण भी होता है । अनेकों घटना मिडिया मे आने के वाद भी सरकार अभी तक किसी प्रकार का कदम नही ली है ।
मधेश तराई फोरम ने एक तथ्यांक प्रस्तुुुुत की जिसमे २०६६÷०६७ का गणना अनुसार नेपाल की जनसंख्या २ करोड ६४ लाख ९४ हजार ५ सौ ४ है । प्रतिशत के अनुसार ४०.९६ प्रतिशत नेपाली जनता अपने देश मे बस रही है तो ५९.४ प्रतिशत जनता वैदेशिक रोजगारी मे है । नेपाल से प्रत्येक दिन ३ हजार से ३५ सय तक वैदेशिक रोजागरी मे नेपाली जनता जाते और आते है । कभी कभी तो ये सुनने को आता है रोजगारी मे गए फलाने जिला का फलाने व्यक्ति ने आत्म हत्या कर ली है वा काज करते वक्त सिढी से गीर कर मौत हो गई और उसका लास एयरपोर्ट मे रखी है । जिसका नेपाल सरकार के पास किसी प्रकार की लेखाजोखा नही है और नही इसकी क्षतिपूर्ति पीडित परिवार को देने का प्रावधान है कि नही शायदे किसी को मालुम होगा । कुछ वर्ष पहले कतार मे १२ नेपाली कामदार को एक सशस्त्र समूह ने गोली मार कर हत्या कर दी । इसका भिजुवल क्लीप संसार भर की लोगों ने देखा होगा । कुछ दिने तक विरोध तो आवश्यक हुई, परन्तु विरोध मृतक की आत्मा को शान्ति तक सिमटकर रह गया ।
वैदेशिक रोजागरी मे नेपाली जनता को भेजने से पहले नेपाल सरकारको एक सीमा निर्धारण करने की आवश्यकता है । दो देशो बीच ठोस सम्झौता होनी चाहिए जिसकी जानकारी प्रत्येक नेपाली कामदार को दी जाए । इसके साथ वैदेशिक रोजगारी मे जानेवाले दक्ष एवं सीप मुलक व्यक्ति होनी चाहिए । शिक्षा की निर्धारित मापदण्ड हो । एक वर्ष से ज्यादा विदेशो मे रहने की इजाजत न दी जाए । महिलाओं को कामदार के रुपमे विदेश जाने से रोका जाए । दक्ष महिलाओं को विशेष निगरानी और सरकारी प्रावधान के तहत भिषा उपलब्ध की जाए । रोजगार मे जाने वालो को तलव और ओभरटाइम नेपाल सरकार अपने अधिन मे निर्धारण करें । जाते वक्त लगी रकम नेपाल सरकारी अपनी बजेट मे छुट्याए और बाद मे किस्तावन्दी मे कटौती करे । तब नेपाली जनता के ही नही नेपाल के विकास मे भी अग्रसरता होगी ।
वैदेशिक रोजगारी से आए व्यक्ति को व्यवसायी करने के लिए न्यूनतम ब्याज दर पर ऋण की व्यवस्था पनि होनी चाहिए । ताकि अपने आप को कभी वो लोग बेरोजगार नही सम्झे । इससे जनशक्ति की अभाव भी नही होगी और देश उत्पादन शक्ति की ओर बढेगा ।
दूसरी बात व्यवसायी का है । दुसरो देश के साथ इस प्रकार की व्यवसायी की जाए ताकी नेपाली जनता भी सरल और असानी से उसका उपभोग कर सके । फिलहाल नेपाल सरकार अभी अलग अलग देश को समान पर अलग अलग कर रखी है । जिसका प्रत्यक्ष असर नेपाली जनता पर पडती देखाई देती है । जनकपुर भन्सार कार्यालय का रामगुलाम यादव के शब्दो मे कहाँ जाए तो नेपाल और भारत के कला—संस्कृति, भेष—भूषा, रहन—सहन तथा विता हुए इतिहास भी एक जैसा ही है । लेकिन व्यवसायीक दृष्टि से देखा जाए तो दोनो मे आकाश पताल की अन्तर है । जो वस्तुए भारत मे एक से डेढ लाख मे भारतीय जनता प्रयोग कर रही है वही वस्तु को नेपाल मे दस से बारह लाख मे उपलब्ध होती है । इस पर नेपाल और भारत सरकार को भी ध्यान देनी होगी ।
नेपाल को विकास वैदेशिक टैक्स वा अन्य टैक्स दो वा चार गुणी करने से नही होगा । इसके लिए स्वदेश मे ही रोजगारी की व्यवस्था करे । चाहे वो कृषि मे करे वा पशुपालन । वैसे तो वन जंगल की संरक्षण कर दूसरो देश मे जडीबुटी की व्यवसाय । जल की सही उपयोग कर विद्युत उत्पादन करे जिनमे नेपाली जनता को भी रोजगारी मिले । इससे अपना ही देश मे सम्पन्नता होगी । इसके लिए राजनीतिक दल को विकास की राजनीति करनी होगी जो फिलहाल भारत के बिहार स्पष्ट उदाहरण बनी है ।
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